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Saturday, May 09, 2009

हमारा प्रजातंत्र

कहने को हमारे देश मे प्रजातंत्र है . पर जरा सोचेँ कि क्या ऐसा है ?
अभी चुनाव का माहौल है और चुनाव के इस दगँल मे अखाडची लोग अपने अपने जोर आजमाइस मे तरह तरह के नारे व दलीलेँ जनता के सामने परोस रहे हैँ . इनमे वर्तमान व भूत , मुख्य व प्रधान मंत्री गण गर्व से यह बखान करने मे जरा भी सकोँच नही कर रहे कि उनके हुकूमत मे या इतने साल तक अमुक प्रदेश पर इतने साल तक राज्य किया और यह किया / वह किया आदि आदि . अपने को अभी भी राजा ही समझते हैँ .जी नही , राजा की तरह ब्यवहार भी करते हैँ . वस्तुत: वे राजा ही हैँ .
हम जनता जनार्दन , उनको राजा स्वीकारते हुए प्रजावत ही ब्यवहार करते हैँ और तदनुरूप उनसे अपेक्षा भी करते हैँ . उनके चरण छूते हैँ , वन्दना करते हैँ .वे उल्टा सीधा कुछ भी करे , वे तो राजा हैँ कुछ भी कर सकते हैँ ऐसा मानते हुए वन्दना मे ही लीन रहते हैँ. सभी नही हाँ काफी लोग तो ऐसे ही हैँ .
क्या यह प्रजातांत्रिक सोच है?

Friday, May 08, 2009

अपराध और राजनीति

अपराध और राजनीति कुछ इस तरह से आपस मे घुलमिल कर समानार्थी हो गए हैँ कि यह कहना मुश्किल हो गया है कि अपराध का राजनैतिक करण हो रहा है अथवा राजनीति का अपराधीकरण ? वास्तविकता यह है कि , एक अपराधी देश के कानून के शिकंजे से राजनीति की शरण ले कर बच जा रहा है और सत्ता व धनलोलुप ब्यक्ति , अपनी महत्वाकाक्षाँओ को , अपराधी बन अथवा अपराधीयोँ के सहारे , राजनीति की सीढी चढ , पूर्ण कर ले रहा है .आज के परिदृश्य मे यह आम धारणा हो गयी है कि ,एक अपराधी राजनैतिक प्रश्रय के कारण , नियम कानून की परवाह नही करता और एक राजनेता को नियम कानून की परवाह की जरूरत नही होती . दोनो ही, नियम – कनून की परिधि से परे हैँ .दोनो का अंतिम लक्ष्य येन केन प्रकारेण , अपने लिये और अपनो के लिये , धनार्जन करना है